यह रोना हैं ईशक का
हर पिढी का गाना हैं
यह जहर हैं मीठा सा
हर कंठ में फँसा हैं
यह चिंगारी हैं 'होने' की
अस्तित्व का मतलब बनाने की
जिसे जमानेने लालसा से घी पिलाया हैं
धुंदले नजर पे जरा चष्मा बिठा दे
अपनी काठी खुद ही काट दे
यार अब बस भी करते हैं!!
- चा.गि. 25-07-16
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