Roots

Wednesday, February 1, 2017

टिमटिम लडकी

एक टिमटिम तिनका
आँखों में मेरी, तुम्हारी...
मेरी रेंगती,मिटती, बनती इमारत में
एक यह भी जुडा तिनका
झगमगता, सुनहरा, मीठा
दो पल गुजारे मैने बचपन के
तुम्हारे मासुमियात के साथ
दो पल झिझोरकर देखा
मेरी दबी, छुपी ममता को
सोचती हूँ आँखों में तुम्हारी
हसी इतनी विरल क्यों हैं
तुम्हारी भेद्यता को देखकर
अजीबसा दर्द होता हैं
हलकासा, मीठासा
फिर उसे भूल भी जाती हूँ
अपनी रेंगने, मिटने, बनने में खो जाती हूँ
और फिर कोई दिन तुम्हे
फिर देखती हूँ
छोटी बातों पे तुम्हारा हसना, शरमाना देखती हूँ
और छोटे छोटे, तिनकोवाले लड्डू
मेरी आँखों में भी फूटते हैं!

- चा.गि.
27-12-17

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