दोस्तों ने कहा, मैं पागल हूँ
घरवालों ने इसके सबूत इखट्ठा किये
मेरा तो खुदसे भरोसा उठ गया
मैक्रोफोने को पकड़े थरथरा रही थी मैं आज
गले से आवाज रोंदी सी आ रही थी
वह शायद सीने से रोना ही निकल रहा था
भाषण के लब्ज़ों में
लोगों को बुरा लगा
भाषण के बाद पीठ थप-थपाये, प्रोत्साहित कर रहे थे
शाम को तुझसे मिली
लैपटॉप के परदेह पर तू हिल रहा था, और जी मैं रही थी
अच्छा लगा
खुदसे मिलकर
मेरी मेरे पागलपन से पूरी पहचान हो गयी
मुझे समझ आया
जैसे माइग्रेन-वाले इंसान को रोशनी सहन नहीं होती
मैं उन्हें सहन नहीं होती
उनके माइग्रेन-भरे सरों में
मैं एक अपवाद हूँ
बीमार तो वो हैं मंटो
पागल तो वो हैं!
- चाँदनी गिरिजा
२८-०१-१९
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