घर से निकल कर
इससे ढूंढो
जो तुम्हारे हिस्से में
एक टुकड़ा धूप का
जोड़ते हैं
वहीं अपने हैं
वहीं परिवार हैं
उनका मिसाल लेकर चलो
सूखे पत्ते में लपेटकर
धागे से बांधकर
गले में डाल चलो
उम्र के साथ देखो
देखो
यह माला कितनी सजती हैं
इसी को अपनी
अपनी एक कामयाबी समझो
चलते रहो
मगर चलते रहो
पानी की तरह
अपना घर
केवल अपने अंदर बसाओ
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चांदनी गिरिजा
दिन २८/३० | ३० दिनों में ३० कविताएं | राष्ट्रीय कविता लेखन महीना #नापोरिमो
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