Roots

Friday, April 29, 2022

Cheetahs in, Adivasis out

मैं तेज़ दौड़कर आऊंगा 
कूनो में बस जाऊंगा 
शायद न भी आऊँगा 
तुम्हें जरूर हटवाऊंगा 
यह बोली न मेरी 
न तुम्हारी 
यह बोल-बाला हैं 
दलालों का  
सुन्ना हैं 
झुकना हैं 
हटना हैं 
मर जाना हैं 
यह ग्रह न मेरा  
न तुम्हारा 
यह हरियाली सिर्फ 
हरी नोटवालों का हैं 
-
चाँदनी गिरिजा 

दिन २९/३० | ३० दिनों में ३० कविताएं | राष्ट्रीय कविता लेखन महीना #नापोरिमो 
#napowrimo #napowrimo2022


A painful addition in the series of human-animal conflict. Adivasis of Kuno being displaced in the name of making way for the African cheetah. It is always the most voiceless that pay the price.  
Title of the poem is same in an attempt to honour the report and PARI's work. Do spare a glance.

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