किसी मेंढक की तरह
दब गया हैं मेरे शरीर के पानी में
वह संकीर्ण किस्सा
शरीर तो पानी हैं, पानी में
मिश्रित हुआ नहीं अब तक
किसी गुब्बारे की तरह
डकारता हैं अचानक
वह संकीर्ण किस्सा
-
चांदनी गिरिजा
दब गया हैं मेरे शरीर के पानी में
वह संकीर्ण किस्सा
शरीर तो पानी हैं, पानी में
मिश्रित हुआ नहीं अब तक
किसी गुब्बारे की तरह
डकारता हैं अचानक
वह संकीर्ण किस्सा
-
चांदनी गिरिजा
दिन ०५/३० | ३० दिनों में ३० कविता | राष्ट्रीय कविता लेखन माह #napowrimo
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